BSEB 12th Hindi Viral Subjective Question 2025: 12th (इंटर) हिंदी लघु उत्तरीय प्रश्न

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BSEB 12th Hindi Viral Subjective Question 2025: 12th (इंटर) हिंदी लघु उत्तरीय प्रश्न

BSEB 12th Hindi Viral Subjective Question 2025:

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Class 12th Hindi Quiz 2025

🌀 Top Geuss Questions 🌀

1 / 10

1) उद्योग' का विशेषण है

2 / 10

2) अशोक वाजपेयी की कविता है

3 / 10

3) शमशेर बहादुर सिंह की कविता है

4 / 10

4) भूषण ने मुख्यतः किस भाषा में रचना की?

5 / 10

5) सुभद्रा कुमारी चौहान की लिखी कविता कौन-सी है?

6 / 10

6) मालती के पति किस बीमारी का ऑपरेशन करके आए थे?

7 / 10

7) शिक्षा का क्या कार्य है?

8 / 10

8) मलयज का मूल नाम क्या था?

9 / 10

9) उदय प्रकाश ने किस पत्रिका के संपादन विभाग में काम किया?

10 / 10

10) गणतंत्र' का विलोम है ?

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1. आत्महत्या एक घृणित अपराध है। यह पूर्णतः कायरता का कार्य है।

प्रस्तुत पक्तियाँ हमारे पाठ्स पुस्तक दिगंत भाग-2 के पाठ ‘एक लेख और एक पत्र’ शीर्षक से लिया गया है। प्रस्तुत पंक्तियों में भगत सिंह ने आत्महत्या के विषय में अपने विचार व्यक्त करते हुए इसे कायरता कहते हैं। क्योंकि कोई भी व्यक्ति जो आत्महत्या करेगा वह थोड़ा दुख, कष्ट सहने के चलते करेगा। वह अपना समस्त मूल्य एक ही क्षण में खो देगा। भगत सिंह कहते हैं कि मेरे विश्वास और विचारों वाला व्यक्ति व्यर्थ में मरना कदापि सहन नहीं कर सकता। संघर्ष में भरना एक आदर्श मृत्यु है। और कायरता इसलिए कहते हैं कि केवल कुछ दुखों से बचने केलिए अपने जीवन को समाप्त कर देते हैं।

2. नारी और नर एक ही द्रव्य की ढली दो प्रतिमाएँ हैं।

प्रस्तुत पक्ति हमारे पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग-2 के पाठ ‘अर्धनारीश्वर’ पाठ से लिया गया है। प्रस्तुत पंक्ति में दिनकर का मन्तव्य है कि नर नारी पूर्ण रूप से समान हैं एवं उनमें से एक के गुण दूसरे के दोष नहीं हो सकते। दिनकर जी के अनुमार नर और नारी एक ही द्रव्य से निर्मित दो मूर्तियां है। प्रत्येक न के भीतर एक नारी और प्रत्येक नारी के भीतर एक न छिपा है। नई ने अपने भीतर न को दबाया है और पुरुष ने अपने भीतर नई को अपेक्षाकृत किया है। इसलिए आज संसार में इतना संघर्ष है

3. व्यक्ति से नहीं, हमें तो नीतियों से झगड़ा हैं, सिद्धान्तों से झगड़ा है, कार्यों से झगड़ा है।

प्रस्तुत पंक्ति हमारे पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग-2 के पाठ ‘संपूर्ण क्रांति से उद्धृत है। सम्पूर्ण क्रान्ति आन्दोलन के समय कांग्रेसियों द्वारा यह प्रचारित किया गया कि जय प्रकाश का नेहरू जी से विवाद था और अब उनकी पुत्री से विवाद है। उनसे पटती नहीं है। यह व्यक्तिगत मामला है। इसी का उत्तर इसमें जय प्रकाश जी ने दिया है। वस्तुतः जय प्रकाश कांग्रेस की विदेश नीति को गलत मानते थे। इसलिए नेहरू से मतान्तर था, परिणाम भी वही हुआ। चीन द्वारा भारत पर हमला मैत्री की ओट में विश्वासघात था जो नेहरू की विदेश नीति की विफलता का प्रमाण था। इसी तरह कांग्रेस के शासन करने के ढंग से उनका विरोध था। क्योंकि इसके कारण महंगाई और भ्रष्टाचार निरन्तर बढ़ रहे थे, राजनीति स्वार्थ परक हो रही थी और नीतियाँ विकृत की जा रही थीं।

4. और अब घर जाओ तो कह देना कि मुझे जो उसने कहा था वह मैंने कर दिया

प्रस्तुत पंक्तियाँ चन्द्रधरशर्मा गुलेरी की कहानी ‘उसने कहा था’ की हैं। यह कथन लहना सिंह का है तथा सूबेदार हजारा सिंह को कह रहा है। इसमें उसके पति के माध्यम से पत्नी को संदेश भेज रहा है। सूबेदारनी ने पति हजारा सिंह और पुत्र बोधा सिंह की रक्षा करने हेतु प्रार्थना की थी, भीख मांगी थी। लहना ने अपने जान की बाजी लगाकर दोनों की रक्षा की। उसने अपने वचन का पालन कर सच्चे प्रेमी होने का प्रमाण दिया। इसमें प्रतिदान रहित दान की कोमलता की मर्मस्पर्शी व्यंजना है।

5. जिस पुरुष में नारीत्व नहीं, अपूर्ण है।

प्रस्तुत पंक्तियाँ रामधारी सिंह दिनकर की अर्द्धनारीश्वर निबन्ध की हैं। चंदा दिनकर का कहना है कि जीवन की पूर्णता कठोरता, कोमलता, ताप-शीतलता आदि के समन्वय में है। यदि पुरुष में नारी भाव न हो तो वह केवल कठोर और अशांति मचानेवाला होता है। अतः अधूरा होता है। स्त्री का थोड़ा गुण आने पर उसमें प्रेम, दया, कोमलता, शीतलता आती है। इसलिए नारीत्व विहीन पुरुष अधूरा माना जाता है।

6. सच है, जब तक मनुष्य बोलता नहीं तब तक उसका गुण-दोष प्रकट नहीं होता।

यह उक्ति बालकृष्ण भट्ट के निबन्ध बात-चीत से गृहीत है। इसमें एक सर्वस्वीकृत और अनुभव सिद्ध तथ्य का कथन किया गया है। जबतक आदमी चुप रहता है तबतक पता नहीं लगता कि उसका स्वभाव कैसा है, उसकी रुचि क्या है और उसका दूसरों के साथ व्यवहार कैसा है। लेकिन जब वह बोलने लगता है तो जाने अनजाने उसका भीतरी और असली रूप व्यक्त हो जाता है। इससे लोगों को पता लग जाता है कि व्यक्ति का स्वभाव कैसा है। स्पष्टतः यह उक्ति बतलाती है कि भाषा व्यक्ति के समग्र व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति है।

7. चार दिन तक पलकटे कना नसीब न हो।

प्रस्तुत पक्तियाँ “उसने कहा था” शीर्षक कहानी से ली गई हैं। इस कहानी के लेखक चन्द्रधर शर्मा गुलेरी हैं। लहना सिंह सिक्ख राइफल्स में जमादार है। वह इंग्लैंड की ओर से जर्मनी के विरूद्ध युद्ध लड़ने गया है। लहना सिंह मोर्चे पर लड़ाई का इंतजार करते-करते उकता गया ‘है। वह चाहता है कि युद्ध शीघ्र प्रारम्भ हो। इंतजार से वह उकता गया है और इसी उकताहट में वह ये पंक्तियाँ कहता है।

लहना सिंह चार दिनों से नहीं सोया है। वह. लगातार युद्ध शुरू होने का इंतजार कर रहा है। उसका कहना है कि जिस तरह बिना दौड़े घोड़ा बिगड़ जाता है, उसी तरह लड़ाई के बिना सैनिक भी बिखर जाता है।

8. मैंने देखा, पवन में चीड़ के वृक्ष…….किन्तु उद्वेगमय नहीं…..

इन पंक्तियों में वाह्य प्रकृति के साथ मालती की आंतरिक मनोदशा का साम्य प्रतीक रूप में

दिखाया गया है। गर्मी से सूखकर मटमैले हुए चीड़ के वृक्ष मालती के सूखे जीवन को प्रतीकित करते हैं। लेखक ने मालती के जीवन को अशांत अनुभव किया है लेकिन उसमें न तो करूणा है और न उद्वेग। इसलिए उसमें एक दुखपूर्ण कोमलता का रूप अनुभव होता है। यहाँ मालती के जीवन और चीड़ के वृक्ष की समानता द्वारा मालती के अशांत जीवन को सूचित करना लेखक का लक्ष्य है।

9. प्रत्येक पत्नी अपने पति को बहुत कुछ उसी दृष्टि से देखती है जिस दृष्टि से लता वृक्ष को देखती है।

प्रस्तुत पंक्तियाँ, ‘अर्द्धनारीश्वर’ शीर्षक निबंध से ली गई हैं। इसके लेखक रामधारी सिंह दिनकर हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में निबन्धकार यह कहना चाहता है कि जिस तरह वृक्ष के अधीन उसकी लताएँ फलती-फूलती हैं, उसी तरह पत्नी भी पुरुषों के अधीन है। वह पुरूष के पराधीन है। इसी कारण नारी का अस्तित्व संकट में पड़ गया है।

लता का स्वभाव है कि वह किसी पेड़ के बिना विकसित नहीं हो पाती। पेड़ पर चढ़कर वह मनमाने ढंग से फैलने लगती है। यही स्थिति पत्नी की है। अपने विकास करने के लिए वह पति का सहारा चाहती है। उसके बिना अपने को असहाय समझती है। यहाँ लेखक ने पत्नियों के पति-आश्रित स्वभाव की ओर संकेत किया है।

10. ‘बहुत काली सिल जरा से लाल केसर से कि जैसे घुल गई हो’

यहाँ दो तरह का विम्ब दिखाई पड़ता है। पहला जीवन का विम्ब है जिसमें सुबह चौका लीपने के बाद गृहिणी सिलवट पर मशाला पीसती है और केसर पीसने के बाद सिलवट धुल जाने के बाद भी उसमें थोड़ी देर तक लाली बनी रहती है। दूसरा यह कि समस्त दिगन्त सूर्य की लाली से भर गया है जो लगता है कि बहुत काली सिल जरा से लाल केसर से धुल गई हो। आकाश की थोड़ी लालिमा ऐसी लगती है जैसे जिस समय सूर्योदय की शुरुआत हुई हो।

11. नर नारी पूर्ण रूप से समान हैं एवं उसमें एक के गुण दूसरे के दोष नहीं हो सकते।

प्रस्तुत पंक्ति अर्धनारीश्वर शीर्षक निबंध से ली गई है। इसके रचयिता रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हैं। दिनकर जी का कहना है कि नर-नारी दोनों पूर्ण रूप से समान हैं। समाज के संतुलन के लिए स्त्री-पुरूष का समान सबल होना आवश्यक है। दिनकर जी के अनुसार नर और नारी एक ही द्रव्य से निर्मित दो मूर्तियाँ हैं। प्रत्येक नर के भीतर एक नारी और प्रत्येक नारी के भीतर एक नर छिपा है।

12. ‘भैया मेरे लिए जो कड़े लाएँगे, वे तारों और बंतों के कड़ों से भी अच्छे होंगे न’।

उत्तर- मुन्नी ‘सिपाही की माँ’ शीर्षक एकांकी की प्रमुख स्त्री-पात्र है। वह प्रेम, ममता और स्नेह की मूर्ति है। मुन्नी अपने भाई को जान से अधिक प्यार करती है। उसका भाई ही उनका संवल है। मुन्नी की सहेलियों की शादी हो चुकी है। उनकी सहेलियों को शादी के अवसर पर कड़े दी गई जो सुन्दर और मनमोहक था। मुन्नी अपनी माँ से कहती है कि भैया लौटकर आयेंगे और उसके लिए तारो और बंतों से भी अधिक सुन्दर कड़े लायेंगे। वह भोली, निश्छलं और साहसी है। इन पंक्तियों में लेखक ने मुन्नी की प्रकृति, स्वभाव और निश्छल भावना को मूर्त रूप प्रदान करने का प्रयास किया है।

13. यह भी हमारी तरह गरीब आदमी है।

प्रस्तुत पंक्ति मोहन राकेश लिखित एकांकी ‘सिपाही की माँ’ से उद्धृत है। इसमें लेखक ने युद्ध की विभीषिका और मानव हृदय के विषाद को मूक वाणी दी है। मानक की माँ बिशनी रात में सोयी हुई है। सपना में देखतीं है कि मानक घायल होकर उसके पाँव पर गिर पड़ा है। दूसरा सैनिक इसको मार डालना चाहता है। माँ मानक को उससे बचाती है। मानक अचानक उठ खड़ा होता है और उस सैनिक का काम तमाम कर देना चाहता है। माँ उनके बीच में आ जाती है और मानक से कहती है-यह भी हमारी तरह गरीब आदमी है। उसकी माँ इसके पीछे पागल हो गई है। इसके घर में बच्चा होने वाला है। यह मर गया तो इसकी बीबी फाँसी लगाकर मर जाएगी। इस उदाहरण में लेखक ने स्पष्ट किया है कि दुखिया ही दुखिया की गति को जानती है।

 

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